तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़ितरत मेरी इश्क़-ओ-मोहब्बत क़िस्मत मेरी तंहाई
कहने की नौबत ही न आई हम भी किसू के हो लें हैंआई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ
उफ़ ले गई है मुझ को मोहब्बत कहाँ कहाँ
कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
उस निगाह-ए-आश्ना को क्या समझ बैठे थे हम
कुछ भी अयाँ निहाँ न था कोई ज़माँ मकाँ न था
देर थी इक निगाह की फिर ये जहाँ जहाँ न था
उस निगाह-ए-आश्ना को क्या समझ बैठे थे हम
कुछ भी अयाँ निहाँ न था कोई ज़माँ मकाँ न था
देर थी इक निगाह की फिर ये जहाँ जहाँ न था
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
फिर वही रंग-ए-तकल्लुम निगह-ए-नाज़ में है
वही अंदाज़ वही हुस्न-ए-बयाँ है कि जो था
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
फिर वही रंग-ए-तकल्लुम निगह-ए-नाज़ में है
वही अंदाज़ वही हुस्न-ए-बयाँ है कि जो था
बात निकले बात से जैसे वो था तेरा बयाँ
नाम तेरा दास्ताँ-दर-दास्ताँ बनता गया
जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं
ख़ाक उड़ाते फिरते हैं जो दीवाने दीवाने हैं
नाम तेरा दास्ताँ-दर-दास्ताँ बनता गया
जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं
ख़ाक उड़ाते फिरते हैं जो दीवाने दीवाने हैं
बस इतने पर हमें सब लोग दीवाना समझते हैं
कि इस दुनिया को हम इक दूसरी दुनिया समझते हैं
दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया
हर बार छुपा कोई हर बार नज़र आया
कि इस दुनिया को हम इक दूसरी दुनिया समझते हैं
दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया
हर बार छुपा कोई हर बार नज़र आया
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
वहशतें बढ़ गईं हद से तिरे दीवानों में
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
वहशतें बढ़ गईं हद से तिरे दीवानों में
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की
सौ बात बन गई है 'फ़िराक़' एक बात की
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की
सौ बात बन गई है 'फ़िराक़' एक बात की
मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले
दी सज़ा इश्क़ ने हर जुर्म-ओ-ख़ता से पहले
ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
तेरे ख़याल की ख़ुशबू से बस रहे हैं दिमाग़
दी सज़ा इश्क़ ने हर जुर्म-ओ-ख़ता से पहले
ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
तेरे ख़याल की ख़ुशबू से बस रहे हैं दिमाग़
रुकी रुकी सी शब-ए-मर्ग ख़त्म पर आई
वो पौ फटी वो नई ज़िंदगी नज़र आई
रस में डूबा हुआ लहराता बदन क्या कहना
करवटें लेती हुई सुब्ह-ए-चमन क्या कहना
वो पौ फटी वो नई ज़िंदगी नज़र आई
रस में डूबा हुआ लहराता बदन क्या कहना
करवटें लेती हुई सुब्ह-ए-चमन क्या कहना
रात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भी
वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
हाए क्या चीज़ है जवानी भी
वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
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