
अनगिनत बार लिखा
और हर बार मिटाया
लिखने से पहले अनगिनत बार लिखा
और हर बार मिटाया
लिखने से पहले
और मिटाने के बाद अनगिनत बार लिखा
और हर बार मिटाया
लिखने से पहले अनगिनत बार लिखा द से भी मिल न सको, इतने पास मत होना
और हर बार मिटाया
लिखने से पहले
और मिटाने के बा
बस वही एक नज़र आया
पर मैं लिखना चाहता हूं
एक बार अमिट स्याही से
क़लम सहमत होगी
काग़ज़ जगह देंगे
मैं जानता हूं
एक दिन लिख ही दूंगा
तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ
मैंने बरसों पहले
तुम्हारे नाम लिखे थे
बहुत सारे ख़त
जिनको बिना ताले के
लाल डिब्बे में पोस्ट करता रहा
किसी ने चालाकी से चुरा लिए थे
इन दिनों वे सारे ख़त वायरल हो रहे हैं
और मिटाने के बाद
बस वही एक नज़र आया
पर मैं लिखना चाहता हूं
एक बार अमिट स्याही से
क़लम सहमत होगी
काग़ज़ जगह देंगे
मैंने बरसों पहले
तुम्हारे नाम लिखे थे
बहुत सारे ख़त
जिनको बिना ताले के
लाल डिब्बे में पोस्ट करता रहा
किसी ने चालाकी से चुरा लिए थे
इन दिनों वे सारे ख़त वायरल हो रहे हैं
और मिटाने के बाद
बस वही एक नज़र आया
पर मैं लिखना चाहता हूं
एक बार अमिट स्याही से
क़लम सहमत होगी
मैं जानता हूं
एक दिन लिख ही दूंगा
तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ
मैंने बरसों पहले
तुम्हारे नाम लिखे थे

बहुत सारे ख़त
जिनको बिना ताले के
लाल डिब्बे में पोस्ट करता रहा
किसी ने चालाकी से चुरा लिए थे
इन दिनों वे सारे ख़त वायरल हो रहे हैं
मुस्कुराकर पढ़ रहा है सारा ज़माना
राज़-ए-मुहब्बत इस तरह खुलेगा
यह इबारत तुम्हारे अलावा सब पढ़ेंगे
यह पता न था

ओ कल्पव्रक्ष की सोनजुही!
ओ अमलताश की अमलकली!
धरती के आतप से जलते...
मन पर छाई निर्मल बदली...
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||

तुम कल्पव्रक्ष का फूल और
मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य
मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी गजल शुभे
तुम शाम गान सी पावन हो
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी
बिजुरी सी तुम मनभावन हो.
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||
तुम जिस शय्या पर शयन करो
वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौलश्री
वह आँगन क्या वृन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ
वे अधर नहीं गंगातट हों
जिसकी छाया बन साथ रहो
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा|

मै तुमको चाँद सितारों का
सौंपू उपहार भला कैसे
मैं यायावर बंजारा साधू
सुर श्रृंगार भला कैसे
मैन जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ
दो पल प्यार भला कैसे
इसलिये विवश हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा|

तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना
इश्क़ तो करना, मगर देवदास मत होना
देखना, चाहना, फिर माँगना, या खो देना
ये सारे खेल हैं, इनमें उदास मत होना
जो भी तुम चाहो, फ़क़त चाहने से मिल जाए
ख़ास तो होना, पर इतने भी ख़ास मत होना
किसी से मिल के नमक आदतों में घुल जाए
वस्ल को दौड़ती दरिया की प्यास मत होना
मेरा वजूद फिर एक बार बिखर जाएगा
ज़रा सुकून से हूँ, आस-पास मत होन
प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए,
ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाए,
घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले,
अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले,
लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाए,
भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाए,
सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में,
नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे,
अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...
लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं,
कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं,
वो लड़ाई को भले आर पार ले जाएँ,
लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ,
जिसकी चौखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी
उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ
हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब
हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे
अँधेरे वक्त में भी गीत गाए जायेंगे...
चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी
फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा
बर्फ़-सी वो पिघल रही होगी
कल का सपना बहुत सुहाना था
ये उदासी न कल रही होगी
सोचता हूँ कि बंद कमरे में
एक शमअ-सी जल रही होगी
तेरे गहनों सी खनखनाती थी
बाजरे की फ़सल रही होगी
जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया
उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी

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