Old shayaries of popular poets


सर दोस्तों के काट कर रक्खे हैं सामने
ग़ैरों से पूछते हैं कसम किस की खाए हम

सौंपा तुम्हें ख़ुदा को चले हम तो नामुराद
कुछ पढ़ के बख्शना जो कभी याद आए हम

ये जान तुम न लोगे अगर, आप जाएगी
इस बेवफ़ा की ख़ैर कहां तक मनाए हम

हम-साए जागते रहे नालों से रात भर
सोए हुए नसीब को क्यों कर जगाए हम

तू भूलने की चीज़ नहीं ख़ूब याद रख
ऐ 'दाग़' किस तरह तुझे दिल से भुलाए हम




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क्यों चुराते हो देखकर आँखें
कर चुकीं मेरे दिल में घर आँखें

ज़ौफ़ से कुछ नज़र नहीं आता
कर रही हैं डगर-डगर आँखें

चश्मे-नरगिस को देख लें फिर हम
तुम दिखा दो जो इक नज़र आँखें 

कोई आसान है तेरा दीदार
पहले बनवाए तो बशर आँखें

न गई ताक-झाँक की आदत
लिए फिरती हैं दर-ब-दर आँखें

ख़ाक पर क्यों हो नक्शे-पा तेरा
हम बिछाएँ ज़मीन पर आँखें

नोहागर कौन है मुक़द्दर पर
रोने वालों में हैं मगर आँखें 

दाग़ आँखें निकालते हैं वो
उनको दे दो निकाल कर आँखें










आपसे बेहद मुहब्बत है मुझे
आप क्यों चुप हैं ये हैरत है मुझे

शायरी मेरे लिए आसाँ नहीं
झूठ से वल्लाह नफ़रत है मुझे

रोज़े-रिन्दी   है नसीबे-दीगराँ
शायरी की सिर्फ़ क़ूवतहै  मुझे

नग़मये-योरप से मैं वाक़िफ़ नहीं
देस ही की याद है बस गत मुझे

दे दिया मैंने बिलाशर्त उन को दिल
मिल रहेगी कुछ न कुछ क़ीमत मुझ
ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते


समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का 
'अकबर' ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का 

गर शैख़-ओ-बहरम   सुनें अफ़साना किसी का 

माबद    न रहे काबा-ओ-बुतख़ाना  किसी का 

अल्लाह ने दी है जो तुम्हे चाँद-सी सूरत

रौशन भी करो जाके सियहख़ाना   किसी का 

अश्क आँखों में आ जाएँ एवज़ नींद के साहब 

ऐसा भी किसी शब सुनो अफ़साना किसी का 

इशरत  जो नहीं आती मेरे दिल में, न आए 

हसरत ही से आबाद है वीराना किसी का

करने जो नहीं देते बयां हालत-ए-दिल को 

सुनिएगा लब-ए-ग़ौर   से अफ़साना किसी का 

कोई न हुआ रूह का साथी दम-ए-आख़िर

काम आया न इस वक़्त में याराना किसी का 



हम जान से बेज़ार  रहा करते हैं 'अकबर' 

जब से दिल-ए-बेताब है दीवाना किसी का बहसें

 फिजूल थीं यह खुला हाल देर में 

अफ्सोस उम्र कट गई लफ़्ज़ों के फेर में 

है मुल्क इधर तो कहत जहद, उस तरफ यह वाज़

कुश्ते वह खा के पेट भरे पांच सेर मे

हैं गश में शेख देख के हुस्ने-मिस-फिरंग

बच भी गये तो होश उन्हें आएगा देर में 

छूटा अगर मैं गर्दिशे तस्बीह से तो क्या 

अब पड़ गया हूँ आपकी बातों के फेर में 


शक्ल जब बस गई आँखों में तो छुपना कैसा

दिल में घर करके मेरी जान ये परदा कैसा

आप मौजूद हैं हाज़िर है ये सामान-ए-निशात 

उज़्र सब तै हैं बस अब वादा-ए-फ़रदा कैसा 

तेरी आँखों की जो तारीफ़ सुनी है मुझसे 

घूरती है मुझे ये नर्गिस-ए-शेहला कैसा 

ऐ मसीहा यूँ ही करते हैं मरीज़ों का इलाज 

कुछ न पूछा कि है बीमार हमारा कैसा 

क्या कहा तुमने, किहमजाते हैं, दिलअपना संभाल 

ये तड़प कर निकल आएगा संभलना कैसा




हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है

डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़   की ये बातें हैं

इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना

मक़सूद   है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

वां  दिल में कि दो सदमे,यां जी में कि सब सह लो

उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही   से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत   के करिश्मे हैं

बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है


जान ही लेने की हिकमत  में तरक़्क़ी देखी

मौत का रोकने वाला कोई पैदा न हुआ

उसकी बेटी ने उठा रक्खी है दुनिया सर पर

ख़ैरियत गुज़री कि अंगूर के बेटा न हुआ

ज़ब्त से काम लिया दिल ने तो क्या फ़ख़्र करूँ

इसमें क्या इश्क की इज़्ज़त थी कि रुसवा न हुआ

मुझको हैरत है यह किस पेच में आया ज़ाहिद


दामे-हस्ती  में फँसा, जुल्फ़ का सौदा  न हुआ 





प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए,
ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाए,

घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले,
अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले,

लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाए,s
भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाए,

सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में,
नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे,

अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...

लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं,
कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं,

वो लड़ाई को भले आर पार ले जाएँ,
लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ,

जिसकी चौखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी
उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ

हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब
हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे

अँधेरे वक्त में भी गीत गाए जायेंगे...





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